योग :  बाधाएं हैं, पर विश्व गुरू बनेगा भारत ही

योग :  बाधाएं हैं, पर विश्व गुरू बनेगा भारत ही

भारतीय योग विश्व पटल पर अपनी पुनर्स्थापना से पहले संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। कहीं व्यायाम को योग बताकर परोसा जा रहा है तो कहीं अष्टांग योग को पावर योग बताकर परंपरागत योग के मायने बदले जा रहे हैं। योग के प्रति एकपक्षीय दृष्टिकोण इसकी बड़ी वजह है। विश्वव्यापी योग बाजार पर काबिज होने के लिए ऐसे लोग भी कतार में खडे हो गए हैं, जिन्हें योग का समग्र ज्ञान नहीं है।

‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित आंकड़े के मुताबिक बीते साल अलग-अलग देशों की एजेंसियों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि दुनिया में 200 मिलियन लोग योगाभ्यास करने लगे हैं। इनमें आधे लोग या तो भारतीय हैं या भारतीय मूल के हैं। योगाभ्यास करने वाले लोगों में गुणात्मक वृद्धि बीते छह सालों में हुई है। इसी अवधि में योग ने बड़े व्यापार का रूप भी लिया। वैश्विक बिजनेस डेटा प्लेटफार्म ‘स्टैटिस्टा’ के मुताबिक भारत में योग कारोबार 85,000 (85 हजार) करोड़ रूपये का है। अमेरिका में यह कारोबार सन् 2020 तक 11.6 बिलियन डालर पहुंच जाने की संभावना है। इसमें योगा ड्रेस, मैट, उपकरण आदि शामिल है।

अमेरिका में बीते साल तक छह हजार योगा स्टूडियो खुल चुके थे। ‘स्टैटिस्टा’ के मुताबिक सन् 2020 तक अकेले अमेरिका में 55 मिलियन यानी करीब पांच करोड़ पचास लाख लोग योगाभ्यास कर रहे होंगे। अमेरिका जैसे विकसित देशों की तरह भारत में भी पर्यटन उद्योग की रफ्तार से ही योग का कारोबार बढ़ रहा है। आप गोवा, केरल और पुडुचेरी से लेकर उत्तराखंड के ऋषिकेश तक चले जाइए, बड़ी संख्या में योगा स्कूल और योग सेंटर मिल जाएंगे। वेलनेस इंडस्टी के योग सेगमेंट को बीते कुछ सालों में मानों पंख लग गए हैं।

भारत के चंद पारंपरिक योग के संस्थानों में से एक बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कारोबारी योगियों की वजह से योग की गिरती गुणवत्ता पर बार-बार चिंता जता चुके हैं। वे कहते हैं – ‘भारत में योग विज्ञान की गौरवशाली परंपरा रही है। भारतीय परंपरागत योग का उद्देश्य मनुष्य के मन, भावना और कर्म संबंधी प्रतिभाओं का जागरण और उसके माध्यम से संपूर्ण मानव समाज का कल्याण रहा है। मानव स्वास्थ्य के लिए योग के प्रभावों को लेकर लगातार अनुसंधानों के बाद उसका उपयोग तनाव प्रबंधन और तनाव मुक्ति के लिए होने लगा था। पर हाल के वर्षों में योग के विश्वव्यापी फैलाव के साथ ही उसका मूल स्वरूप विकृत हुआ है। इसलिए जिधर देखो, उधर बैडेड और वायरल योग के विभिन्न रूप हैं, जिनका कमाई छोड़कर अन्य कोई लक्ष्य नहीं है।’  

अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद की शासकीय परिषद के सदस्य डॉ. वरुण वीर ने भी हाल ही भारतीय योग और योगाचार्यों के लिए विश्वव्यापी अवसर के संदर्भ में अपने आलेख में कहा है कि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा के बाद योग को अपनाने वालों की संख्या समूचे विश्व में बढ़ी है। यदि हम उस संख्या को भारत-भाव से जोड़कर रखने में सफल रहे तो विश्व में परिवारभाव का प्रसार होगा और भारत एक बार पुन: विश्व गुरु बन जाएगा। आज योग, चिकित्सा पद्धति के रूप में भी विश्व के कई देशों में प्रचलित हो रहा है। शरीर से संबंधित अनेक प्रकार के रोग जैसे स्लिप डिस्क, सर्वाइकल, शरीर के जोड़ों का दर्द, शरीर की अकड़न-जकड़न, हृदय से संबंधित रोग, उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, अस्थमा, तनाव, अवसाद आदि अनेक प्रकार के शारीरिक-मानसिक रोगों में योग चिकित्सा अत्यंत लाभकारी है। विश्व के अनेक देशों में मनोचिकित्सकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है जिसका सीधा और स्पष्ट संकेत है कि मनोरोगियों की संख्या देश और विदेशों में लगातार बढ़ रही है। जबकि योग शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करने में सौ फीसदी कारगर है।

भारत की अपनी विशिष्ठ साख की वजह से दुनिया में जिस गति से योग का फैलाव हो रहा है उसी गति से भारतीय योग शिक्षकों की मांग भी बढ़ती जा रही है। पर जैसा कि स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने योग की गुणवत्ता को लेकर चिंता जताई है, यदि हम योग के मूल उद्देश्य से भटक कर अपनी विद्या को कमर दर्द और घुटने के दर्द तक सीमित कर लेंगे तो बड़ा अवसर गंवा देंगे। उपलब्ध आकड़ों के मुताबिक लगभग दो सौ देशों के लोग धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं से परे जाकर योग को अपना रहे हैं। इन देशों में चीन योग को अत्यधिक तीव्र गति से अपनाने वाला देश है। चीन के लगभग सभी जिम और स्वास्थ्य केंद्र बिना योग के अधूरे समझे माने जाते हैं। भारत के कई हजार योग शिक्षक चीन में नियमित रूप से योगाभ्यास कराते हैं।

जाहिर है कि भारत के लिए यह स्थिति सुनहरे अवसर की तरह है। पर सवाल वहीं आकर ठहर जाता है कि हम परंपरागत योग की आत्मा का परित्याग करके परदेश में अपनी छाप कैसे छोड़ पाएंगे? इस संदर्भ में डॉ वरूण वीर का अनुभव गौर करने लायक है। वे कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद की शासकीय टोली के सदस्य के रूप में उन्हें लगभग दो सौ योग शिक्षकों के साक्षात्कार लेने का अवसर मिला था। उनमें से लगभग एक सौ शिक्षकों के पेट निकले हुए थे। लगभग साठ योग शिक्षक ऐसे थे, जो हल्के-फुल्के आसन ही कर सकते थे। केवल पच्चीस ही ऐसे लगे, जो पश्चिमोत्तानासन अच्छी तरह से करने में समर्थ थे। मात्र पांच शिक्षक कठिन आसन के साथ-साथ अच्छी तरह से योग की कक्षा ले सकते थे। कमाल यह कि ये योग शिक्षक ही विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करने की इच्छा रखते थे।

ऐसे में इसमें दो मत नहीं कि योग शिक्षकों का गुणवत्तापूर्ण योग शिक्षा के साथ ही धाराप्रवाह अंग्रेजी, शाकाहारी भोजन और भारतीय परिधान के साथ-साथ अत्यंत विनम्रता से पेश आने का प्रशिक्षण देने की जरूरत है। ताकि वे भारतीय योग को लेकर विदेशों में सैकड़ों वर्षों में बनी धारणा के अनुरूप साबित हो सकें। ऐसे प्रतिभाशाली योग शिक्षक ही योग को आसन के स्तर से उठाकर मानसिक औऱ आध्यात्मिक स्तर तक ले जाने में सक्षम हो सकेंगे। यह संतोष की बात है कि भारत सरकार ने इस चिंताजनक पहलू को समझने और तदनुरूप काम करने की कोशिश की है। जैसे, क्यूसीआई (क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया) के जरिए योग शिक्षकों की गुणवत्ता के स्तर को सुधारने की कोशिश की जा रही है। इससे पहले होता यह था कि एक महीने का कोर्स कर कोई भी योग शिक्षक बन जाता था जो कि योग व योग शिक्षक के स्तर को गिराने का ही काम करता था। अब हालात बदलने की संभावना बनी है।

भारत का परंपरागत योग इतना समृद्ध है कि आशा बंधती है कि वह आज न कल अपनी खूशबू बिखेरेगा ही। आध्यात्मिक वजहों को छोड़ भी दें तो शारीरिक और मानसिक संकटों से जूझते दुनिया भर के लोग परंपरात योग को मूल रूप में अपनाने को मजबूर होंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और बीते दो दशकों से योग विज्ञान पर लेखन कर रहे हैं।) 

 

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